अब गुणवर्धने को पीएम बनाकर संकट दूर करना चाहते हैं विक्रमसिंघे

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देश के आम लोग गंभीर बिजली संकट झेल रहे हैं। कम से कम 8 से 10 घंटे बिजली कटौती हो रही है। कीमतें अभी भी आसमान छू रही हैं। श्रीलंका पर कुल 35 बिलियन डॉलर का विदेशी कर्ज है जिसमें 10 फीसदी कर्ज़ अकेले चीन का है…

श्रीलंका में इतने आंदोलनों, प्रदर्शनों और विद्रोह जैसे हालात के बावजूद सत्ता के खेल में रानिल विक्रमसिंघे की सियासत भारी पड़ रही है। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने अपने बचपन के साथी और स्कूल के सहपाठी दिनेश गुणवर्धने को देश का प्रधानमंत्री बना दिया है और दावा किया जा रहा है कि ये दोनों साथी मिलकर नई रणनीति के साथ श्रीलंका को मौजूदा आर्थिक संकट से उबारने की कोशिश करेंगे।

पिछले तीन महीने के जन विद्रोह और भीषण महंगाई से त्रस्त जनता के राष्ट्रपति भवन पर कब्जे के बाद भी यहां की सियासत का वही पुराना रंग ढंग नजर आ रहा है और लोग अब भी सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। रातों रात प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति बन गए रानिल विक्रमसिंघे को प्रदर्शनकारी पूर्व राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का मोहरा बता रहे हैं और उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। विपक्षियों का मानना है कि गोतबाया के राष्ट्रपति रहते रानिल विक्रमसिंघे उन्हीं के इशारों पर चलते रहे और अब जब गोटाबाया जनता के गुस्से से डरकर सिंगापुर भाग गए हैं तो रानिल विक्रमसिंघे ने राजपक्षे कुनबे को बचाने के लिए नया दांव खेला है। प्रदर्शनकारियों ने गुरुवार देर रात तक कोलंबो के गोलफेस पर जमा रहे और विक्रमसिंघे के खिलाफ नारेबाजी करते रहे। गोलफेस राष्ट्रपति सचिवालय के पास वो जगह है जहां आम तौर पर प्रदर्शनकारी जमा होते हैं और उन्हें वहां से आगे जाने से रोका जाता है। देर रात तक वहां की पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच रसाकशी चलती रही। बावजूद इसके राष्ट्रपति निवास में सियासत अपने तरीके से चलती रही।

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